स्वागतेनाभिनन्द्याथ पादौ भगवतो बलि: ।
अवनिज्यार्चयामास मुक्तसङ्गमनोरमम् ॥ २७ ॥
शब्दार्थ
सु-आगतेन—स्वागत के शब्दों से; अभिनन्द्य—स्वागत करके; अथ—इस प्रकार; पादौ—दोनों चरणकमल; भगवत:— भगवान् के; बलि:—बलि महाराज ने; अवनिज्य—धोकर; अर्चयाम् आस—पूजा की; मुक्त-सङ्ग-मनोरमम्—मुक्तात्माओं को सुन्दर लगने वाले भगवान् को ।.
अनुवाद
इस प्रकार मुक्तात्माओं को सदैव सुन्दर लगने वाले भगवान् का समुचित स्वागत करते हुए बलि महाराज ने उनके चरणकमलों को धोकर उनकी पूजा की।
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