प्रीताश्चाप्सरसोऽनृत्यन्गन्धर्वप्रवरा जगु: ।
तुष्टुवुर्मुनयो देवा मनव: पितरोऽग्नय: ॥ ८ ॥
शब्दार्थ
प्रीता:—अत्यन्त प्रसन्न होकर; च—भी; अप्सरस:—अप्सराएँ; अनृत्यन्—नाचने लगीं; गन्धर्व-प्रवरा:—श्रेष्ठ गन्धर्व गण; जगु:—गाने लगे; तुष्टुवु:—स्तुतियों द्वारा भगवान् को हर्षित किया; मुनय:—मुनियों ने; देवा:—देवताओं ने; मनव:—मनुओं ने; पितर:—पितृलोक के वासियों ने; अग्नय:—अग्नि देवताओं ने ।.
अनुवाद
अत्यधिक हर्षित होकर अप्सराएँ प्रसन्नता के मारे नाचने लगीं, श्रेष्ठ गन्धर्व गाने लगे और महा-मुनि, देवता, मनु, पितरगण तथा अग्निदेवों ने भगवान् को प्रसन्न करने के लिए स्तुतियाँ कीं।
____________________________
All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥