यत: यत:—जहाँ-जहाँ, जहाँ कहीं भी; अहम्—मैं; तत्र—वहीं; असौ—यह हिरण्यकशिपु; मृत्यु:—मृत्यु; प्राण-भृताम्— समस्त जीवों के; इव—सदृश; अत:—इसलिए; अहम्—मैं; अस्य—उसके; हृदयम्—अन्त:स्थल में; प्रवेक्ष्यामि—प्रवेश करूँगा; पराक्-दृश:—ऐसे व्यक्ति का जिसको केवल बाह्य दृष्टि प्राप्त है ।.
अनुवाद
जहाँ कहीं भी मैं जाऊँगा, हिरण्यकशिपु मेरा पीछा करेगा जिस तरह मृत्यु सभी जीवों का पीछा करती है। अतएव मेरे लिए यही श्रेयस्कर होगा कि इसके अन्त:स्थल में प्रवेश कर जाऊँ। तब यह अपनी केवल बहिर्मुखी दृष्टि की शक्ति के कारण मुझे नहीं देख सकेगा।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥