उस उद्यान में एक विशाल सरोवर था, जो चमकीले सुनहरे कमल के फूलों से तथा कुमुद, कह्लार, उत्पल एवं शतपत्र फूलों से भरा था जिनसे पर्वत की सुन्दरता में वृद्धि हो रही थी। उस उद्यान में बिल्व, कपित्थ, जम्बीर तथा भल्लातक वृक्ष भी थे। मदमत्त भौरें मधुपान कर रहे थे और अत्यन्त मधुर ध्वनि में गान करने वाले पक्षियों की चहचहाहट के साथ वे भी गुनगुना रहे थे। सरोवर में हंसों, कारण्डवों, चक्रावकों, सारसों, जलमुर्गियों, दात्यूहों, कोयष्टियों तथा अन्य चहचहाते पक्षियों के झुंड के झुंड थे। मछलियों तथा कछुवों के इधर-उधर तेजी से गति करने से कमल के फूलों से जो परागकण गिरे थे उनसे जल सुशोभित था। सरोवर के चारों ओर कदम्ब, वेतस, नल, नीप, वञ्जुलक, कुन्द, कुरुबक, अशोक, शिरीष, कूटज, इंगुद, कुब्जक, स्वर्णयूथी, नाग, पुन्नाग, जाति, मल्लिका, शतपत्र, जालका तथा माधवी लताएँ थीं। सरोवर के तट ऐसे वृक्षों से भलीभान्ति अलंकृत थे, जो सभी ऋतुओं में फूल तथा फल देने वाले थे। इस तरह पूरा पर्वत भव्य रूप से सजा हुआ था।
तात्पर्य
त्रिकूट पर्वत की नदियों तथा सरोवरों के ऐसे विशद वर्णन से यह निर्णय निकलता है कि पृथ्वी पर ऐसे अति-सौन्दर्य की कोई तुलना नहीं हो सकती। किन्तु अन्य लोकों में ऐसे अनेक आश्चर्य हैं। उदाहरणार्थ, हमें ज्ञात होता है कि वहाँ बीस लाख किस्म के वृक्ष हैं, किन्तु ये सभी पृथ्वी पर नहीं पाये जाते। श्रीमद्भागवत ब्रह्माण्ड की सारी बातों का पूरा-पूरा ज्ञान प्रदान करता है। इसमें न केवल इस ब्रह्माण्ड का वर्णन मिलता है, अपितु इसके परे आध्यात्मिक जगत का भी विवरण दिया गया है। कोई भी व्यक्ति श्रीमद्भागवत में वर्णित भौतिक तथा आध्यात्मिक जगतों के इन वर्णनों को चुनौती नहीं दे सकता। पृथ्वी से चन्द्रमा तक जाने के प्रयास असफल हो चुके हैं, किन्तु पृथ्वी के लोग यह समझ सकते हैं कि अन्य लोकों में क्या-क्या विद्यमान है। इसके लिए किसी कल्पना की आवश्यकता नहीं है, कोई भी व्यक्ति श्रीमद्भागवत से वास्तविक ज्ञान ग्रहण करके संतुष्ट हो सकता है।
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