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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 2: गजेन्द्र का संकट  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  8.2.21 
यद्गन्धमात्राद्धरयो गजेन्द्रा
व्याघ्रादयो व्यालमृगा: सखड्‌गा: ।
महोरगाश्चापि भयाद्‌द्रवन्ति
सगौरकृष्णा: सरभाश्चमर्य: ॥ २१ ॥
 
शब्दार्थ
यत्-गन्ध-मात्रात्—उस हाथी की गन्ध से ही; हरय:—सिंह; गज-इन्द्रा:—अन्य हाथी; व्याघ्र-आदय:—बाघ जैसे हिंस्र पशु; व्याल-मृगा:—अन्य हिंस्र पशु; सखड्गा:—गैंडे; महा-उरगा:—बड़े-बड़े सर्प; —भी; अपि—निस्सन्देह; भयात्—डर से; द्रवन्ति—भाग रहे थे; —सहित; गौर-कृष्णा:—उनमें से कुछ श्वेत और कुछ काले; सरभा:—सरभ; चमर्य:—तथा चमरी भी ।.
 
अनुवाद
 
 उस हाथी की सुगंध पाकर ही सारे अन्य हाथी, बाघ तथा अन्य हिंस्र पशु—यथा सिंह, गैंडे, सर्प एवं सफेद-काले सरभ—भय से भाग गये। यहाँ तक कि चमरी हिरन भी भाग निकले।
 
 
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