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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 2: गजेन्द्र का संकट  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  8.2.7 
नानारण्यपशुव्रातसङ्कुलद्रोण्यलङ्‌कृत: ।
चित्रद्रुमसुरोद्यानकलकण्ठविहङ्गम: ॥ ७ ॥
 
शब्दार्थ
नाना—अनेक प्रकार के; अरण्य-पशु—जंगली जानवर; व्रात—झुंड; सङ्कुल—पूर्ण; द्रोणि—घाटियाँ; अलङ्कृत:—सुन्दर ढंग से सजायी गई; चित्र—किस्में; द्रुम—वृक्ष; सुर-उद्यान—देवताओं का बगीचा; कलकण्ठ—चहकती हुए; विहङ्गम:—पक्षी ।.
 
अनुवाद
 
 त्रिकूट पर्वत के नीचे की घाटियाँ अनेक प्रकार के जंगली जानवरों से सुशोभित हैं और देवताओं के उद्यानों में जो वृक्ष हैं उन पर नाना प्रकार के पक्षी सुरीली तान से चहकते रहते हैं।
 
 
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