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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 20: बलि महाराज द्वारा ब्रह्माण्ड समर्पण  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  8.20.13 
एष वा उत्तमश्लोको न जिहासति यद् यश: ।
हत्वा मैनां हरेद् युद्धे शयीत निहतो मया ॥ १३ ॥
 
शब्दार्थ
एष:—यह (ब्रह्मचारी); वा—अथवा; उत्तम-श्लोक:—भगवान् विष्णु जिनकी पूजा वैदिक स्तुतियों से की जाती है; —नहीं; जिहासति—त्यागना चाहता है; यत्—क्योंकि; यश:—यश; हत्वा—मारकर; मा—मुझको; एनाम्—इस भूमि; हरेत्—ले लेगा; युद्धे—युद्ध में; शयीत—लेट जायेगा; निहत:—मारा जाकर; मया—मेरे द्वारा ।.
 
अनुवाद
 
 यदि यह ब्राह्मण वास्तव में भगवान् विष्णु है, जिसकी पूजा वैदिक स्तुतियों द्वारा की जाती है, तो वह अपने सर्वव्यापक यश को कभी नहीं छोड़ेगा; वह या तो मेरे द्वारा मारा जाकर लेट जायेगा या युद्ध में मेरा वध कर देगा।
 
तात्पर्य
 बलि महाराज के इस कथन कि विष्णु मारा जाकर लेट जायेगा सीधा अर्थ नहीं लेना चाहिए क्योंकि विष्णु किसी के द्वारा मारे नहीं जा सकते। वे सबको मार सकते हैं, किन्तु स्वयं नहीं मारे जा सकते। अतएव लेट जाने का वास्तविक अर्थ है कि भगवान् विष्णु बलि महाराज के हृदय में निवास करेंगे। भगवान् विष्णु भक्ति द्वारा भक्त से हारते हैं अन्यथा कोई उन्हें हरा नहीं सकता।
 
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