श्री-शुक: उवाच—श्री शुकदेव गोस्वामी ने कहा; तस्य—बलि महाराज का; इत्थम्—इस प्रकार; भाषमाणस्य—अपनी भाग्यशाली स्थिति का वर्णन करते हुए; प्रह्राद:—महाराज प्रह्लाद; भगवत्-प्रिय:—भगवान् के सर्वाधिक प्रिय भक्त; आजगाम—वहाँ प्रकट हुए; कुरु-श्रेष्ठ—हे कुरुओं में श्रेष्ठ महाराज परीक्षित; राका-पति:—चन्द्रमा; इव—सदृश; उत्थित:— उदित हुए ।.
अनुवाद
शुकदेव गोस्वामी ने कहा : हे कुरुश्रेष्ठ! जब बलि महाराज इस प्रकार अपने भाग्य की प्रशंसा कर रहे थे तो भगवान् के परम प्रिय भक्त प्रह्लाद महाराज वहाँ प्रकट हुए मानो रात्रि में चन्द्रमा उदय हो गया हो।
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