बद्धम्—बन्दी किया गया; वीक्ष्य—देखकर; पतिम्—अपने पति को; साध्वी—सती स्त्री; तत्-पत्नी—बलि महाराज की पत्नी ने; भय-विह्वला—डर के मारे अत्यन्त उद्विग्न; प्राञ्जलि:—हाथ जोड़े; प्रणता—नमस्कार करके; उपेन्द्रम्—वामनदेव को; बभाषे—सम्बोधित किया; अवाक्-मुखी—सिर नीचा किये; नृप—हे महाराज परीक्षित ।.
अनुवाद
लेकिन बलि महाराज की सती पत्नी अपने पति को बन्दी देखकर भयभीत तथा दु:खी थी। उसने तुरन्त भगवान् वामनदेव (उपेन्द्र) को नमस्कार किया और हाथ जोडक़र इस प्रकार बोली।
तात्पर्य
यद्यपि ब्रह्माजी बोल रहे थे, उन्हें थोड़ी देर तक रुकना पड़ा क्योंकि बलि महाराज की पत्नी विन्ध्यावलि, जो अत्यन्त क्षुब्ध एवं भयभीत थी, कुछ कहना चाह रही थी।
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