भगवद्गीता (९.२६) में कहा गया है— पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।
तदहं भक्त्युपहृतम् अश्नामि प्रयतात्मन: ॥
भगवान् इतने दयालु हैं कि यदि कोई निष्कपट व्यक्ति भक्तिपूर्वक एवं द्वैतरहित होकर भगवान् के चरणकमलों पर थोड़ा सा जल, फूल, फल या पत्ती चढ़ाता है, तो भगवान् उसे स्वीकार कर लेते हैं। तब वह भक्त स्वर्गलोक भेज दिया जाता है। ब्रह्माजी ने भगवान् का ध्यान इस बात की ओर आकृष्ट किया और प्रार्थना की कि वे बलि महाराज को छोड़ दें क्योंकि उन्हें वरुणपाश से बन्दी होने के कारण कष्ट हो रहा था और उन्होंने पहले ही तीनों लोक तथा अपना सर्वस्व उन्हें भेंट कर दिया था।