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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 24: भगवान् का मत्स्यावतार  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  8.24.12 
एकदा कृतमालायां कुर्वतो जलतर्पणम् ।
तस्याञ्जल्युदके काचिच्छफर्येकाभ्यपद्यत ॥ १२ ॥
 
शब्दार्थ
एकदा—एक दिन; कृतमालायाम्—कृतमाला नदी के तट पर; कुर्वत:—देते हुए; जल-तर्पणम्—जल का अर्घ्य; तस्य— उसकी; अञ्जलि—अंजुलि भर; उदके—जल में; काचित्—कोई; शफरी—छोटी मछली; एका—एक; अभ्यपद्यत—प्रकट हुई ।.
 
अनुवाद
 
 एक दिन जब राजा सत्यव्रत कृतमाला नदी के तट पर जल का तर्पण करके तपस्या कर रहा था, तो उसकी अंजुली के जल में एक छोटी सी मछली प्रकट हुई।
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥