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श्लोक |
तस्या दीनतरं वाक्यमाश्रुत्य स महीपति: ।
कलशाप्सु निधायैनां दयालुर्निन्य आश्रमम् ॥ १६ ॥ |
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शब्दार्थ |
तस्या:—उस मछली के; दीन-तरम्—अत्यन्त कारुणिक; वाक्यम्—वचन को; आश्रुत्य—सुनकर; स:—वह; मही-पति:— राजा; कलश-अप्सु—कलश में रखे जल में; निधाय—रखकर; एनाम्—इस मछली को; दयालु:—दयालु; निन्ये—ले आया; आश्रमम्—अपने घर ।. |
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अनुवाद |
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उस मछली के कारुणिक शब्दों से प्रभावित होकर उस दयालु राजा ने उस मछली को एक जलपात्र में रख लिया और उसे अपने घर ले आया। |
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