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श्लोक |
न म एतदलं राजन् सुखं वस्तुमुदञ्चनम् ।
पृथु देहि पदं मह्यं यत् त्वाहं शरणं गता ॥ २० ॥ |
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शब्दार्थ |
न—नहीं; मे—मुझको; एतत्—यह; अलम्—उपयुक्त; राजन्—हे राजा; सुखम्—सुख से; वस्तुम्—रहने के लिए; उदञ्चनम्— जलाशय; पृथु—काफी बड़ा; देहि—दीजिये; पदम्—स्थान; मह्यम्—मुझको; यत्—जो; त्वा—तुम्हारी; अहम्—मैं; शरणम्—शरण में; गता—आई हुई ।. |
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अनुवाद |
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तब मछली ने कहा : हे राजा! यह जलाशय मेरे सुखमय निवास के लिए उपयुक्त नहीं है। कृपया और अधिक विस्तृत जलाशय प्रदान करें क्योंकि मैं आपकी शरण में आई हूँ। |
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