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श्लोक |
नूनं त्वं भगवान् साक्षाद्धरिर्नारायणोऽव्यय: ।
अनुग्रहाय भूतानां धत्से रूपं जलौकसाम् ॥ २७ ॥ |
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शब्दार्थ |
नूनम्—निश्चय ही; त्वम्—तुम हो; भगवान्—भगवान्; साक्षात्—प्रत्यक्ष; हरि:—भगवान्; नारायण:—भगवान्; अव्यय:— अव्यय; अनुग्रहाय—दया दिखाने के लिए; भूतानाम्—सारे जीवों के लिए; धत्से—धारण किया है; रूपम्—रूप; जल- ओकसाम्—जलचर की तरह ।. |
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अनुवाद |
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हे प्रभु! आप निश्चय ही अव्यय भगवान् नारायण श्री हरि हैं। आपने जीवों पर अपनी कृपा प्रदर्शित करने के लिए ही अब जलचर का स्वरूप धारण किया है। |
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