अश्रौषीत्—उसने सुना; ऋषिभि:—ऋषियों के; साकम्—साथ; आत्म-तत्त्वम्—आत्म-साक्षात्कार का विज्ञान; असंशयम्— बिना किसी सन्देह के (क्योंकि यह भगवान् द्वारा कहा गया था); नावि आसीन:—नाव में बैठा; भगवता—भगवान् द्वारा; प्रोक्तम्—बताया गया; ब्रह्म—सारा दिव्य साहित्य; सनातनम्—सदा विद्यमान ।.
अनुवाद
राजा सत्यव्रत ने ऋषियों सहित नाव में बैठे-बैठे आत्म-साक्षात्कार के विषय में भगवान् के उपदेशों को सुना। ये सारे उपदेश शाश्वत वैदिक साहित्य (ब्रह्म) से थे। इस तरह राजा तथा ऋषियों को परम सत्य (परब्रह्म) के विषय में कोई संशय नहीं रहा।
____________________________
All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥