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श्लोक |
ज्ञात्वा तद् दानवेन्द्रस्य हयग्रीवस्य चेष्टितम् ।
दधार शफरीरूपं भगवान् हरिरीश्वर: ॥ ९ ॥ |
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शब्दार्थ |
ज्ञात्वा—जानकर; तत्—उस; दानव-इन्द्रस्य—महान् असुर; हयग्रीवस्य—हयग्रीव का; चेष्टितम्—कार्यकलाप; दधार—धारण किया; शफरी-रूपम्—मछली का रूप; भगवान्—भगवान्; हरि:—हरि ने; ईश्वर:—परम नियन्ता ।. |
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अनुवाद |
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यह जानकर कि यह कार्य महान् असुर हयग्रीव ने किया है, सर्व-ऐश्वर्यशाली भगवान् हरि ने मछली का रूप धारण किया और उस असुर को मारकर वेदों को बचाया। |
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तात्पर्य |
चूँकि प्रत्येक वस्तु जल में निमग्न हो गई थी, वेदों को बचाने के |
लिए भगवान् के लिए मछली का रूप धारण करना आवश्यक हो गया था। |
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