ॐ अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया। चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नम: ॥ “मैं अपने गुरु को सादर नमस्कार करता हूँ जिन्होंने ज्ञान के दीपक से मेरी उन आँखों को खोल दिया है, जो अज्ञान के अंधकार से अंधी हो चुकी थीं।” भले ही मनुष्य इस जगत में जीवन-संघर्ष क्यों न करे, किन्तु उसके लिए सदैव जीवित रह पाना असम्भव है। फिर भी मनुष्य को समझना चाहिए कि यह जीवन-संघर्ष अज्ञान के कारण है, क्योंकि प्रत्येक जीव परमेश्वर का नित्य अंश है। किसी को हाथी या भारतीय या अमरीकी पुरुष के रूप में जीवित रहने की कोई आवश्यकता नहीं है। मनुष्य को जन्म-मृत्यु के चक्कर से मुक्ति प्राप्त करने की एकमात्र कामना करनी चाहिए। अज्ञान के कारण प्रकृति द्वारा प्रदत्त प्रत्येक जीवन को हम सुखी तथा आनन्ददायक मानते हैं, किन्तु इस भौतिक जगत के पतित जीवन में ब्रह्मा से लेकर एक क्षुद्र चींटी तक कोई भी वास्तव में सुखी नहीं है। हम सुखपूर्वक रहने के लिए अनेक योजनाऐ बनाते हैं, किन्तु इस भौतिक जगत में कोई सुखी नहीं हो सकता भले ही हम इस जीवन में या उस जीवन में स्थायी आवास बनाने का कितना ही प्रयत्न क्यों न करें। |