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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 5: देवताओं द्वारा भगवान् से सुरक्षा याचना  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  8.5.1 
श्रीशुक उवाच
राजन्नुदितमेतत् ते हरे: कर्माघनाशनम् ।
गजेन्द्रमोक्षणं पुण्यं रैवतं त्वन्तरं श‍ृणु ॥ १ ॥
 
शब्दार्थ
श्री-शुक: उवाच—श्री शुकदेव गोस्वामी ने कहा; राजन्—हे राजा; उदितम्—पहले ही वर्णन किया जा चुका; एतत्—यह; ते—तुमसे; हरे:—भगवान् का; कर्म—कर्म; अघ-नाशनम्—जिसे सुनकर मनुष्य सारे पापों से मुक्त हो सकता है; गजेन्द्र-मोक्षणम्—गजेन्द्र के मोक्ष को; पुण्यम्—सुनने तथा वर्णन करने में अत्यन्त पवित्र; रैवतम्—रैवत मनु के विषय में; तु— लेकिन; अन्तरम्—इस युग में; शृणु—कृपया मुझसे सुनो ।.
 
अनुवाद
 
 श्री शुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा : हे राजा! मैंने तुमसे गजेन्द्रमोक्षण लीला का वर्णन किया है, जो सुनने में अत्यन्त पवित्र है। भगवान् की ऐसी लीलाओं के विषय में सुनकर मनुष्य सारे पापों के फलों से छूट सकता है। अब मैं रैवत मनु का वर्णन कर रहा हूँ, कृपया उसे सुनो।
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥