श्री-शुक: उवाच—श्री शुकदेव गोस्वामी ने कहा; एवम्—इस प्रकार; आमन्त्र्य—सम्बोधित करके; भगवान्—शिवजी; भवानीम्—भवानी को; विश्व-भावन:—सारे विश्व के शुभचिन्तक; तत् विषम्—उस विष को; जग्धुम्—पीना; आरेभे—प्रारम्भ किया; प्रभाव-ज्ञा—शिवजी की सामर्थ्य को भलीभाँति जानने वाली माता भवानी ने; अन्वमोदत—अनुमति दी ।.
अनुवाद
श्रील शुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा : इस प्रकार भवानी को सूचित करके शिवजी वह विष पीने लगे और भवानी ने उन्हें ऐसा करने की अनुमति दे दी क्योंकि वे शिवजी की क्षमताओं को भलीभाँति जानती थीं।
____________________________
All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥