तत उच्चै:श्रवा नाम हयोऽभूच्चन्द्रपाण्डुर: ।
तस्मिन्बलि: स्पृहां चक्रे नेन्द्र ईश्वरशिक्षया ॥ ३ ॥
शब्दार्थ
तत:—तत्पश्चात्; उच्चै:श्रवा: नाम—उच्चैश्रवा नाम का; हय:—घोड़ा; अभूत्—उत्पन्न हुआ; चन्द्र-पाण्डुर:—चन्द्रमा की भाँति श्वेत; तस्मिन्—उसको; बलि:—बलि महाराज ने; स्पृहाम् चक्रे—पाने की इच्छा प्रकट की; न—नहीं; इन्द्र:—देवताओं का राजा; ईश्वर-शिक्षया—भगवान् की पहले की सलाह के कारण ।.
अनुवाद
तत्पश्चात् चन्द्रमा के समान श्वेत रंग का उच्चै:श्रवा नामक घोड़ा उत्पन्न हुआ। बलि महाराज ने इसे लेना चाहा। स्वर्ग के राजा इन्द्र ने इसका विरोध नहीं किया क्योंकि भगवान् ने पहले से ही उन्हें ऐसी सलाह दे रखी थी।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥