भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोक महेश्वरम्। सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति ॥ यह विश्व-शान्ति का गुर भगवद्गीता (५.२९) में दिया हुआ है। जब लोग जान जाएँगे कि भगवान् कृष्ण ही परम भोक्ता हैं, परम स्वामी तथा समस्त जीवों के परम सुहृद हैं, तो सारे विश्व में शान्ति तथा समृद्धि निश्चित रूप से छा जाएगी। दुर्भाग्यवश, बद्धजीव भगवान् की बहिरंगा शक्ति द्वारा भ्रम में पड़े रहने के कारण एक दूसरे से लडऩा-झगडऩा चाहते हैं जिससे शान्ति भंग होती है। शान्ति के लिए पहली शर्त है कि श्री या धन की देवी द्वारा प्रदत्त सारी सम्पत्ति भगवान् को अर्पित की जाये। प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए कि वह संसारी सम्पत्ति के अपने झूठे स्वामित्व को त्याग दे और प्रत्येक वस्तु कृष्ण को अर्पित करे। कृष्णभावनामृत आन्दोलन की यही शिक्षा है। |