श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 9: मोहिनी-मूर्ति के रूप में भगवान् का अवतार  »  श्लोक 16-17
 
 
श्लोक  8.9.16-17 
प्राङ्‌मुखेषूपविष्टेषु सुरेषु दितिजेषु च ।
धूपामोदितशालायां जुष्टायां माल्यदीपकै: ॥ १६ ॥
तस्यां नरेन्द्र करभोरुरुशद्दुकूल-
श्रोणीतटालसगतिर्मदविह्वलाक्षी ।
सा कूजती कनकनूपुरशिञ्जितेन
कुम्भस्तनी कलसपाणिरथाविवेश ॥ १७ ॥
 
शब्दार्थ
प्राक्-मुखेषु—पूर्व की ओर मुँह किये; उपविष्टेषु—अपने-अपने आसनों पर बैठे; सुरेषु—सारे देवताओं में; दिति-जेषु—असुरों में; च—भी; धूप-आमोदित-शालायाम्—रंगभूमि (सभा-मंडप) जो धूप के धुएँ से पूर्ण थी; जुष्टायाम्—पूर्णतया सजी हुई; माल्य-दीपकै:—फूलों की मालाओं तथा दीपकों से; तस्याम्—उस रंगभूमि (सभा-मंडप) में; नर-इन्द्र—हे राजा; करभ ऊरु:—हाथी के सूँडों सदृश जाँघों वाली; उशत्-दुकूल—अत्यन्त सुन्दर साड़ी पहने; श्रोणी-तट—गुरु नितम्बों के कारण; अलस-गति:—धीरे-धीरे पग रखती; मद-विह्वल-अक्षी—जिसकी आँखें युवावस्था के गर्व से बेचैन थीं; सा—वह; कूजती— झंकार करती; कनक-नूपुर—सोने के पायल; शिञ्जितेन—ध्वनि करती; कुम्भ-स्तनी—जल के घट सदृश स्तनों वाली; कलस पाणि:—हाथ में जल का पात्र लिए; अथ—इस प्रकार; आविवेश—रंगभूमि में प्रविष्ट हुई ।.
 
अनुवाद
 
 हे राजा! ज्यों ही देवता तथा असुर पूर्व दिशा में मुख करके उस सभा-मण्डप में बैठ गये जो फूल मालाओं तथा बत्तियों से पूर्णतया सजाया गया था और धूप के धुएँ से सुगन्धित हो गया था, उसी समय अत्यन्त सुन्दर साड़ी पहने, पायलों की झनकार करती उस स्त्री ने अत्यन्त गुरु नितम्बों के कारण मन्द गति से चलते हुए उस सभा-मण्डप में प्रवेश किया। उसकी आँखें युवावस्था के मद से विह्वल थीं; उसके स्तन जल से पूर्ण घटों के समान थे; उसकी जाँघें हाथी की सूँड़ जैसी दिखती थीं और वह अपने हाथ में अमृत-पात्र लिए हुए थी।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥