कल्पयित्वा पृथक् पङ्क्तीरुभयेषां जगत्पति: ।
तांश्चोपवेशयामास स्वेषु स्वेषु च पङ्क्तिषु ॥ २० ॥
शब्दार्थ
कल्पयित्वा—व्यवस्था करके; पृथक् पङ्क्ती:—अलग-अलग पंक्तियाँ; उभयेषाम्—देवता तथा असुर दोनों की; जगत्-पति:— ब्रह्माण्ड के स्वामी ने; तान्—उन सबों को; च—तथा; उपवेशयाम् आस—बैठा दिया; स्वेषु स्वेषु—अपने-अपने स्थानों पर; च—भी; पङ्क्तिषु—पंक्तियों में ।.
अनुवाद
मोहिनी-मूर्ति रूपी ब्रह्माण्ड के स्वामी भगवान् ने देवताओं तथा असुरों को बैठने के लिए अलग-अलग पंक्तियों की व्यवस्था कर दी और उन्हें अपने-अपने पद के अनुसार बैठा दिया।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥