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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 10: परम भगवान् रामचन्द्र की लीलाएँ  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  9.10.18 
रक्ष:पतिस्तदवलोक्य निकुम्भकुम्भ-
धूम्राक्षदुर्मुखसुरान्तकनरान्तकादीन् ।
पुत्रं प्रहस्तमतिकायविकम्पनादीन्
सर्वानुगान् समहिनोदथ कुम्भकर्णम् ॥ १८ ॥
 
शब्दार्थ
रक्ष:-पति:—राक्षसों का स्वामी, रावण; तत्—ऐसे उपद्रव को; अवलोक्य—देखकर; निकुम्भ—निकुम्भ; कुम्भ—कुम्भ; धूम्राक्ष— धूभ्राक्ष; दुर्मुख—दुर्मुख; सुरान्तक—सुरान्तक; नरान्तक—नरान्तक; आदीन्—इत्यादि को; पुत्रम्—अपने बेटे इन्द्रजित को; प्रहस्तम्—प्रहस्त को; अतिकाय—अतिकाय; विकम्पन—विकम्पन; आदीन्—आदि को; सर्व-अनुगान्—अपने सारे अनुयायियों को; समहिनोत्—आज्ञा दी (शत्रुओं से लडऩे के लिए); अथ—अन्तत:; कुम्भकर्णम्—अपने सबसे प्रसिद्ध भाई कुम्भकर्ण को ।.
 
अनुवाद
 
 जब राक्षसपति रावण ने वानर सैनिकों द्वारा किये जा रहे उपद्रवों को देखा तो उसने निकुम्भ, कुम्भ, धूभ्राक्ष, दुर्मुख, सुरान्तक, नरान्तक तथा अन्य राक्षसों एवं अपने पुत्र इन्द्रजित को भी बुलवाया। तत्पश्चात् उसने प्रहस्त, अतिकाय, विकम्पन को और अन्त में कुम्भकर्ण को बुलवाया। इसके बाद उसने अपने सारे अनुयायियों को शत्रुओं से लडऩे के लिए प्रोत्साहित किया।
 
 
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