रामस्तमाह पुरुषादपुरीष यन्न:
कान्तासमक्षमसतापहृता श्ववत् ते ।
त्यक्तत्रपस्य फलमद्य जुगुप्सितस्य
यच्छामि काल इव कर्तुरलङ्घ्यवीर्य: ॥ २२ ॥
शब्दार्थ
राम:—भगवान् रामचन्द्र ने; तम्—उससे (रावण से); आह—कहा; पुरुष-अद-पुरीष—तुम मनुष्यों के भक्षकों (राक्षसों) के मल हो; यत्—क्योंकि; न:—मेरी; कान्ता—पत्नी; असमक्षम्—मेरी अनुपस्थिति के कारण असहाय; असता—महान् पापी तुम्हारे द्वारा; अपहृता—अपहरण की गई; श्व-वत्—कुत्ते के समान, जो मालिक की अनुपस्थिति में रसोई से भोजन लेकर भाग जाता है; ते— तुम्हारा; त्यक्त-त्रपस्य—निर्लज्ज; फलम् अद्य—आज तुमको मजा चखा दूँगा; जुगुप्सितस्य—अत्यन्त नीच का; यच्छामि—तुम्हें दण्ड दूँगा; काल: इव—मृत्यु के समान; कर्तु:—सारे पापों के कर्ता तुमको; अलङ्घ्य-वीर्य:—किन्तु मैं सर्वशक्तिमान होने के कारण कभी अपने प्रयास में विफल नहीं होता ।.
अनुवाद
भगवान् रामचन्द्र ने रावण से कहा : तुम मानवभक्षियों में अत्यन्त गर्हित हो। निस्सन्देह, तुम उनकी विष्ठा तुल्य हो। तुम कुत्ते के समान हो क्योंकि वह घर के मालिक के न होने पर रसोई से खाने की वस्तु चुरा लेता है। तुमने मेरी अनुपस्थिति में मेरी पत्नी सीतादेवी का अपहरण किया है। इसलिए जिस तरह यमराज पापी व्यक्तियों को दण्ड देता है उसी तरह मैं भी तुम्हें दण्ड दूँगा। तुम अत्यन्त नीच, पापी तथा निर्लज्ज हो। अतएव आज मैं तुम्हें दण्ड दूँगा क्योंकि मेरा वार कभी खाली नहीं जाता।
तात्पर्य
न च दैवात् परं बलम्—कोई भावी बल दिव्य शक्ति से पार नहीं पा सकता। रावण इतना पापी तथा निर्लज्ज था कि उसे इसका पता ही नहीं था कि रामचन्द्र की ह्लादिनी शक्ति माता सीता का अपहरण करने का क्या फल होगा। यही राक्षसों का अवगुण है। असत्यम् अप्रतिष्ठं ते जगदाहुरनीश्वरम्। राक्षसों को इसका ज्ञान ही नहीं है कि भगवान् सृष्टि के शासक हैं। वे सोचते हैं कि सब कुछ संयोगवश उत्पन्न हुआ है और उसका न तो कोई शासक या राजा है न नियन्ता। इसीलिए वे स्वतंत्र होकर स्वेच्छा से कर्म करते हैं और इस हद तक पहुँच जाते हैं कि लक्ष्मीजी तक का अपहरण कर बैठते हैं। रावण की यह नीति किसी भी भौतिकतावादी के लिए अत्यन्त घातक है। निस्सन्देह, इससे भौतिकतावादी सभ्यता का विनाश होता है। तो भी नास्तिक लोग राक्षस हैं अतएव वे घृणित से घृणित कर्म करते हैं जिसके लिए वे अवश्य ही दण्डित होते हैं। धर्म भगवान् के आदेशों से युक्त है अतएव जो भी इन आदेशों का पालन करता है वही धर्मी है। जो भगवान् के आदेशों का पालन नहीं करता वह अधर्मी है और उसे दण्डित होना पड़ता है।
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