हे नाथ! हे स्वामी! तुम अन्यों की मुसीबत की प्रतिमूर्ति थे; अतएव तुम रावण कहलाते थे। किन्तु अब जब तुम पराजित हो चुके हो, हम भी पराजित हैं क्योंकि तुम्हारे बिना इस लंका के राज्य को शत्रु ने जीत लिया है। बताओ न अब लङ्का किसकी शरण में जायेगी?
तात्पर्य
रावण की पत्नी मन्दोदरी तथा अन्य पत्नियाँ भलीभाँति जानती थीं कि रावण कितना क्रूर व्यक्ति है। “रावण” शब्द का अर्थ ही है “जो अन्यों को सताता है।” रावण निरन्तर अन्यों को मुसीबत में डालता रहा, किन्तु जब उसके पापकृत्यों की पराकाष्ठा सीतादेवी को कष्ट देने तक पहुँच गई तो वह भगवान् रामचन्द्र द्वारा मार डाला गया।
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