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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 10: परम भगवान् रामचन्द्र की लीलाएँ  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  9.10.27 
न वै वेद महाभाग भवान् कामवशं गत: ।
तेजोऽनुभावं सीताया येन नीतो दशामिमाम् ॥ २७ ॥
 
शब्दार्थ
—नहीं; वै—निस्सन्देह; वेद—जान पाया; महा-भाग—हे भाग्यशाली; भवान्—आप; काम-वशम्—काम के वशीभूत; गत:— होकर; तेज:—प्रभाव से; अनुभावम्—ऐसे प्रभाव के फलस्वरूप; सीताया:—सीतादेवी के; येन—जिसके द्वारा; नीत:—ले जाया गया; दशाम्—स्थिति को; इमाम्—इस प्रकार की (विनाश की) ।.
 
अनुवाद
 
 हे परम सौभाग्यवान, तुम कामवासना के वशीभूत हो गये थे; अतएव तुम सीतादेवी के प्रभाव (तेज) को नहीं समझ सके। तुम भगवान् रामचन्द्र द्वारा मारे जाकर सीताजी के शाप से इस दशा को प्राप्त हुए हो।
 
तात्पर्य
 ऐसा नहीं है कि केवल सीतादेवी ही शक्तिशाली थीं अपितु कोई भी स्त्री सीतादेवी के पदचिह्नों पर चलकर ऐसी ही शक्तिशाली बन सकती है। वैदिक साहित्य के इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं। जहाँ भी हम आदर्श सती स्त्रियों का वर्णन पाते हैं सीताजी का नाम उसमें अवश्य मिलता है। रावण की पत्नी मन्दोदरी भी परम सती थी। इसी प्रकार द्रौपदी भी पाँच उच्च सतियों में से एक है। जिस प्रकार मनुष्य को ब्रह्मा, नारद जैसे महापुरुषों का अनुसरण करना चाहिए उसी प्रकार हर स्त्री को भी सीता, मन्दोदरी, द्रौपदी जैसी आदर्श स्त्रियों के पथ का अनुसरण करना चाहिए। सती रहकर तथा अपने पति के प्रति आज्ञाकारिणी बनकर स्त्री अपने को दैवी शक्ति से सम्पन्न करती है। यह नैतिक सिद्धान्त है कि मनुष्य को मन में पराई स्त्री के प्रति विषयवासना की भावना नहीं लानी चाहिए। मातृवत् परदारेषु—बुद्धिमान मनुष्य को चाहिए कि पराई स्त्री को अपनी माता के तुल्य देखे। यही चाणक्य श्लोक का (१०) आदेश है—

मातृवत् परदारेषु परद्रव्येषु लोष्ट्रवत्।

आत्मवत् सर्वभूतेषु य: पश्यति स पण्डित: ॥

“जो कोई पराई स्त्री को अपनी माता की तरह, पराये धन को धूल के समान तथा सारे जीवों को अपने समान मानता है वह पण्डित माना जाता है।” इस तरह रावण न केवल भगवान् रामचन्द्र द्वारा अपितु अपनी ही पत्नी मन्दोदरी द्वारा भी धिक्कारा गया। चूँकि वह सती स्त्री थी अतएव वह अन्य सती की, विशेष रूप से सीतादेवी जैसी पत्नी की, शक्ति को जानती थी।

 
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