तानहं द्विषत: क्रूरान् संसारेषु नराधमान्। क्षिपाम्यजस्रमशुभानासुरीष्वेव योनिषु ॥ “जो लोग ईर्ष्यालु तथा शैतान हैं, जो मनुष्यों में सबसे नीच हैं उन्हें मैं भवसागर में विविध राक्षस योनियों में डालता हूँ।” इस तरह रावण, हिरण्यकशिपु, कंस तथा दंतवक्र जैसे नास्तिकों की गति नारकीय जीवन में है। रावण की पत्नी मन्दोदरी सती होने के कारण सब कुछ जानती थी। यद्यपि वह अपने पति की मृत्यु पर विलाप कर रही थी, किन्तु वह जानती थी कि उसके शरीर और आत्मा का क्या होगा क्योंकि भले ही हमें भौतिक आँखों से यह न दिखे, किन्तु ज्ञान की आँखों से देखा जा सकता है (पश्यन्ति ज्ञानचक्षुष: )। वैदिक इतिहास में ऐसे कितने ही उदाहरण हैं जिनमें मनुष्य के ईश्वरविहीन होने पर प्रकृति के नियमों द्वारा भर्त्सित होना पड़ता है। |