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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 10: परम भगवान् रामचन्द्र की लीलाएँ  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  9.10.3 
तस्यानुचरितं राजन्नृषिभिस्तत्त्वदर्शिभि: ।
श्रुतं हि वर्णितं भूरि त्वया सीतापतेर्मुहु: ॥ ३ ॥
 
शब्दार्थ
तस्य—भगवान् रामचन्द्र तथा उनके भाइयों का; अनुचरितम्—दिव्य कार्यकलाप; राजन्—हे राजा (महाराज परीक्षित); ऋषिभि:— ऋषियों द्वारा; तत्त्व-दर्शिभि:—परम सत्य को जानने वाले; श्रुतम्—सुना गया; हि—निस्सन्देह; वर्णितम्—सुन्दर ढंग से वर्णित; भूरि—अनेक; त्वया—तुम्हारे द्वारा; सीता-पते:—सीता के पति भगवान् रामचन्द्र के; मुहु:—बारम्बार ।.
 
अनुवाद
 
 हे राजा परीक्षित, भगवान् रामचन्द्र के दिव्य कार्यकलापों का वर्णन उन साधु पुरुषों द्वारा किया गया है जिन्होंने सत्य का दर्शन किया है। चूँकि आप सीतापति रामचन्द्र के विषय में बारम्बार सुन चुके हैं अतएव मैं इन कार्यकलापों का वर्णन संक्षेप में ही करूँगा। कृपया सुनें।
 
तात्पर्य
 आधुनिक राक्षस जो डाक्टरेट डिग्रीधारी होने के कारण अपने को उन्नत रूप से शिक्षित मानते हैं, उन्होंने यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि रामचन्द्र भगवान् न होकर सामान्य व्यक्ति हैं। किन्तु जो विद्वान हैं और आध्यात्मिक ज्ञान से युक्त हैं वे ऐसे मतों को कभी स्वीकार नहीं करेंगे। वे तो उन तत्त्वदर्शियों द्वारा प्रस्तुत किये गये भगवान् रामचन्द्र एवं उनके कार्यकलापों के वर्णनों को ही स्वीकार करेंगे जो परम सत्य को जानते हैं। भगवद्गीता (४.३४) में भगवान् उपदेश देते हैं—

तद् विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।

उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिन: ॥

“गुरु के पास जाकर सत्य सीखने का प्रयास करो। विनीत होकर उससे प्रश्न करो और उसकी सेवा करो। स्वरूपसिद्ध व्यक्ति तुम्हें ज्ञान प्रदान कर सकता है क्योंकि उसने सत्य का साक्षात्कार किया है।” तत्त्वदर्शी बने बिना कोई व्यक्ति भगवान् के कार्यकलापों का वर्णन नहीं कर सकता। अतएव कहने को तो अनेक रामायणें हैं, किन्तु उनमें से कई प्रामाणिक नहीं हैं। कभी-कभी भगवान् रामचन्द्र के कार्यकलापों का वर्णन अपनी कल्पना, चिन्तन या भौतिक भावों के आधार पर किया जाता है। किन्तु रामचन्द्रजी की विलक्षणताओं को काल्पनिक मानकर उनका वर्णन नहीं करना चाहिए। भगवान् रामचन्द्र की कथा का वर्णन करते समय शुकदेव गोस्वामी ने महाराज परीक्षित को बतलाया, “आपने भगवान् रामचन्द्र के कार्यकलापों के विषय में पहले से सुन रखा है।” अतएव स्पष्ट है कि पाँच हजार वर्ष पूर्व भी रामचन्द्र की अनेक कथाएँ या रामायणें थीं और अब भी अनेक हैं। किन्तु हमें केवल तत्त्वदर्शियों द्वारा लिखित कथाओं को चुनना चाहिए (ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिन: )। ऐसे तथाकथित पंडितों की किताबों को नहीं जो डाक्टरेट डिग्री के आधार पर ज्ञानी होने का दावा करते हैं। यह शुकदेव गोस्वामी द्वारा दी गई चेतावनी है। ऋषिभिस्तत्त्वदर्शिन:। यद्यपि वाल्मीकि-रचित रामायण एक विशाल ग्रंथ है, किन्तु इन्हीं कार्यकलापों को शुकदेव गोस्वामी ने थोड़े से श्लोकों में सार रूप में प्रस्तुत किया है।

 
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