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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 10: परम भगवान् रामचन्द्र की लीलाएँ  »  श्लोक 31
 
 
श्लोक  9.10.31 
राम: प्रियतमां भार्यां दीनां वीक्ष्यान्वकम्पत ।
आत्मसन्दर्शनाह्लादविकसन्मुखपङ्कजाम् ॥ ३१ ॥
 
शब्दार्थ
राम:—रामचन्द्र; प्रिय-तमाम्—अपनी अत्यन्त प्रिय; भार्याम्—पत्नी को; दीनाम्—दीन अवस्था में; वीक्ष्य—देखकर; अन्वकम्पत— अत्यन्त दयालु हो उठे; आत्म-सन्दर्शन—अपने प्रिय को देखने पर; आह्लाद—आनन्दमय जीवन का भाव; विकसत्—प्रकट करते हुए; मुख—मुँह; पङ्कजाम्—कमल सदृश ।.
 
अनुवाद
 
 अपनी पत्नी को उस दशा में देखकर भगवान् रामचन्द्र अत्यधिक दयार्द्र हो उठे। जब वे पत्नी के समक्ष आये तो वे भी अपने प्रियतम को देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुईं और उनके कमल सदृश मुख से आह्लाद झलकने लगा।
 
 
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