भगवान् रामचन्द्र के समक्ष खड़ाओं को रखकर भरतजी आँखों में आँसू भरकर और दोनों हाथ जोडक़र खड़े रहे। भगवान् रामचन्द्र अपनी दोनों भुजाओं में भरत को भरकर दीर्घकाल तक आलिंगन करते रहे और उन्होंने उन्हें अपने आँसुओं से नहला दिया। तत्पश्चात् सीतादेवी तथा लक्ष्मण के साथ रामचन्द्र ने विद्वान ब्राह्मणों तथा परिवार के गुरुजनों को नमस्कार किया। समस्त अयोध्यावासियों ने भगवान् को सादर नमस्कार किया।
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