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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 10: परम भगवान् रामचन्द्र की लीलाएँ  »  श्लोक 47
 
 
श्लोक  9.10.47 
पुत्रान् स्वमातरस्तास्तु प्राणांस्तन्व इवोत्थिता: ।
आरोप्याङ्केऽभिषिञ्चन्त्यो बाष्पौघैर्विजहु: शुच: ॥ ४७ ॥
 
शब्दार्थ
पुत्रान्—पुत्रों को; स्व-मातर:—अपनी माताएँ; ता:—वे, कौशल्या तथा कैकेयी; तु—लेकिन; प्राणान्—प्राण; तन्व:—शरीर; इव— सदृश; उत्थिता:—उठकर; आरोप्य—लेकर; अङ्के—गोद में; अभिषिञ्चन्त्य:—अपने पुत्रों के शरीरों को तर करते हुए; बाष्प—आँसुओं से; ओघै:—लगातार गिराते; विजहु:—बन्द कर दिया; शुच:—अपने पुत्रों के वियोग से जनित शोक ।.
 
अनुवाद
 
 अपने पुत्रों को देखकर राम, लक्ष्मण भरत तथा शत्रुघ्न की माताएँ तुरन्त उठ खड़ी हुईं मानो निश्चेष्ट शरीर में चेतना आ गई हो। माताओं ने अपने पुत्रों को अपनी गोदों में भर लिया और उन्हें आँसुओं से नहलाकर अपने दीर्घकालीन विछोह के सन्ताप से छुटकारा पा लिया।
 
 
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