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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 10: परम भगवान् रामचन्द्र की लीलाएँ  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  9.10.5 
विश्वामित्राध्वरे येन मारीचाद्या निशाचरा: ।
पश्यतो लक्ष्मणस्यैव हता नैर्ऋतपुङ्गवा: ॥ ५ ॥
 
शब्दार्थ
विश्वामित्र-अध्वरे—ऋषि विश्वामित्र की यज्ञशाला में; येन—जिसके (रामचन्द्रजी) द्वारा; मारीच-आद्या:—मारीच इत्यादि; निशा- चरा:—अज्ञान के अंधकार में रात में घूमने वाले असभ्य व्यक्ति; पश्यत: लक्ष्मणस्य—लक्ष्मण द्वारा देखे जाकर; एव—निस्सन्देह; हता:—मारे गये; नैर्ऋत-पुङ्गवा:—राक्षसों के बड़े-बड़े सरदार ।.
 
अनुवाद
 
 अयोध्यानरेश भगवान् रामचन्द्र ने विश्वामित्र द्वारा सम्पन्न किये गए यज्ञ के क्षेत्र में अनेक राक्षसों तथा असभ्य पुरुषों का वध किया जो तमोगुण से प्रभावित होकर रात में विचरण करते थे। ऐसे रामचन्द्र जिन्होंने लक्ष्मण की उपस्थिति में इन असुरों का वध किया हमारी रक्षा करने की कृपा करें।
 
 
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