चारों युगों में से कलियुग सबसे निकृष्ट है, किन्तु यदि वर्णाश्रम धर्म की विधि लागू कर दी जाय तो इस कलियुग में भी सत्ययुग जैसी परिस्थिति लाई जा सकती है। हरे कृष्ण आन्दोलन या कृष्णभावनामृत आन्दोलन इसी प्रयोजन के निमित्त है— कलेर्दोषनिधे राजन्नस्ति ह्येको महान् गुण:।
कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसङ्ग: परं व्रजेत्।
“हे राजन! यद्यपि कलियुग दोषों से पूर्ण है फिर भी इस युग में एक उत्तम गुण यह है कि केवल हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन करके मनुष्य भवबन्धन से छूट सकता है और दिव्य धाम को जा सकता है।” (भागवत १२.३.५१) यदि लोग ‘हरे कृष्ण हरे राम’ कीर्तन के इस आन्दोलन को स्वीकार कर लें तो वे अवश्य ही कलियुग के कल्मष से मुक्त हो जायेंगे और इस युग के लोग सत्ययुग जैसे ही सुखी हो सकेंगे। कोई भी व्यक्ति कहीं भी रहकर इस हरे कृष्ण आन्दोलन को ग्रहण कर सकता है; उसे केवल हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन करना, विधि-विधानों को मानना तथा पापी जीवन के कल्मष से मुक्त होना होगा। यदि कोई पापी जीवन को तुरन्त नहीं छोड़ सकता किन्तु यदि वह भक्ति तथा श्रद्धापूर्वक हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन करता है तो वह अवश्य ही सारे पापमय कर्मों से छूट जायेगा और उसका जीवन सफल हो जायेगा। परं विजयते श्रीकृष्णसङ्कीर्तनम्। यह भगवान् रामचन्द्र का आशीष है कि वे इस कलियुग में गौरसुन्दर रूप में प्रकट हुए है।