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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 10: परम भगवान् रामचन्द्र की लीलाएँ  »  श्लोक 51
 
 
श्लोक  9.10.51 
त्रेतायां वर्तमानायां काल: कृतसमोऽभवत् ।
रामे राजनि धर्मज्ञे सर्वभूतसुखावहे ॥ ५१ ॥
 
शब्दार्थ
त्रेतायाम्—त्रेतायुग में; वर्तमानायाम्—यद्यपि उस काल में स्थित; काल:—समय; कृत—सत्ययुग; सम:—समान; अभवत्—हुआ; रामे—रामचन्द्र की उपस्थिति के कारण; राजनि—राजा के रूप में; धर्म-ज्ञे—धार्मिक; सर्व-भूत—सारे जीवों को; सुख-आवहे—पूर्ण सुख देते हुए ।.
 
अनुवाद
 
 भगवान् रामचन्द्र त्रेतायुग में राजा बने थे, किन्तु उनकी सरकार अच्छी होने से वह युग सत्ययुग जैसा था। प्रत्येक व्यक्ति धार्मिक एवं पूर्ण सुखी था।
 
तात्पर्य
 चारों युगों में से कलियुग सबसे निकृष्ट है, किन्तु यदि वर्णाश्रम धर्म की विधि लागू कर दी जाय तो इस कलियुग में भी सत्ययुग जैसी परिस्थिति लाई जा सकती है। हरे कृष्ण आन्दोलन या कृष्णभावनामृत आन्दोलन इसी प्रयोजन के निमित्त है—

कलेर्दोषनिधे राजन्नस्ति ह्येको महान् गुण:।

कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसङ्ग: परं व्रजेत्।

“हे राजन! यद्यपि कलियुग दोषों से पूर्ण है फिर भी इस युग में एक उत्तम गुण यह है कि केवल हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन करके मनुष्य भवबन्धन से छूट सकता है और दिव्य धाम को जा सकता है।” (भागवत १२.३.५१) यदि लोग ‘हरे कृष्ण हरे राम’ कीर्तन के इस आन्दोलन को स्वीकार कर लें तो वे अवश्य ही कलियुग के कल्मष से मुक्त हो जायेंगे और इस युग के लोग सत्ययुग जैसे ही सुखी हो सकेंगे। कोई भी व्यक्ति कहीं भी रहकर इस हरे कृष्ण आन्दोलन को ग्रहण कर सकता है; उसे केवल हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन करना, विधि-विधानों को मानना तथा पापी जीवन के कल्मष से मुक्त होना होगा। यदि कोई पापी जीवन को तुरन्त नहीं छोड़ सकता किन्तु यदि वह भक्ति तथा श्रद्धापूर्वक हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन करता है तो वह अवश्य ही सारे पापमय कर्मों से छूट जायेगा और उसका जीवन सफल हो जायेगा। परं विजयते श्रीकृष्णसङ्कीर्तनम्। यह भगवान् रामचन्द्र का आशीष है कि वे इस कलियुग में गौरसुन्दर रूप में प्रकट हुए है।

 
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