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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 10: परम भगवान् रामचन्द्र की लीलाएँ  »  श्लोक 52
 
 
श्लोक  9.10.52 
वनानि नद्यो गिरयो वर्षाणि द्वीपसिन्धव: ।
सर्वे कामदुघा आसन् प्रजानां भरतर्षभ ॥ ५२ ॥
 
शब्दार्थ
वनानि—सारे वन; नद्य:—नदियाँ; गिरय:—पर्वत; वर्षाणि—राज्य या पृथ्वी के विभिन्न भाग; द्वीप—द्वीप; सिन्धव:—सागर; सर्वे— ये सारे; काम-दुघा:—अपने-अपने ऐश्वर्यों से पूरित; आसन्—थे; प्रजानाम्—सारे जीवों का; भरत-ऋषभ—हे भरतवंश में श्रेष्ठ महाराज परीक्षित ।.
 
अनुवाद
 
 हे भरतश्रेष्ठ महाराज परीक्षित, भगवान् रामचन्द्र के राज में सारे वन, नदियाँ, पर्वत, राज्य, सातों द्वीप तथा सातों समुद्र सारे जीवों को जीवन की आवश्यक वस्तुएँ प्रदान करने के लिए अनुकूल थे।
 
 
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