प्रेम्णा अनुवृत्त्या—प्रेम तथा श्रद्धापूर्वक पति की सेवा करने के कारण; शीलेन—ऐसे उत्तम आचरण के द्वारा; प्रश्रय-अवनता—सदैव पति के प्रति विनीत एवं उसे संतुष्ट करने के लिए तैयार; सती—सती साध्वी; भिया—भयभीत होने के कारण; ह्रिया—लज्जा से; च—भी; भाव-ज्ञा—(पति के) भाव को समझकर; भर्तु:—अपने पति के; सीता—सीतादेवी ने; अहरत्—मोहित कर लिया; मन:—मन को ।.
अनुवाद
सीतादेवी अत्यन्त विनीत, आज्ञाकारिणी, लज्जालु तथा सती थीं और सदा अपने पति के भाव को समझने वाली थीं। इस प्रकार अपने चरित्र एवं प्रेम तथा सेवा से वे भगवान् के मन को पूरी तरह मोह सकीं।
तात्पर्य
जिस तरह भगवान् राम आदर्श पति है (एकपत्नीव्रत) उसी तरह माता सीता आदर्श पत्नी है। ऐसे संयोग से पारिवारिक जीवन अत्यन्त सुखी बन जाता है। यद् यद् आचरति श्रेष्ठस्तत् तदेवेतरो जन:— महापुरुष जो भी उदाहरण प्रस्तुत करते है, सामान्य लोग उसी का अनुसरण करते है। यदि राजा, नेता तथा ब्राह्मण शिक्षक, वैदिक साहित्य से प्राप्त उदाहरण प्रस्तुत करें तो सारा जगत स्वर्ग बन जाये। निस्सन्देह, इस जगत से नारकीय दशाओं का नामोनिशान मिट जाय।
इस प्रकार श्रीमद्भागवत के नवम स्कन्ध के अन्तर्गत “परम भगवान् रामचन्द्र की लीलाएँ” नामक दसवें अध्याय के भक्तिवेदान्त तात्पर्य पूर्ण हुए।
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