हे राजन्, भगवान् रामचन्द्र की लीलाएँ हाथी के बच्चे के समान अत्यन्त अद्भुत थीं। उस सभाभवन में जिसमें सीतादेवी को अपने पति का चुनाव करना था, उन्होंने इस संसार के वीरों के बीच भगवान् शिव के धनुष को तोड़ दिया। यह धनुष इतना भारी था कि इसे तीन सौ व्यक्ति उठाकर लाए थे लेकिन भगवान् रामचन्द्र ने इसे मोडक़र डोरी चढ़ाई और बीच से उसे वैसे ही तोड़ डाला जिस तरह हाथी का बच्चा गन्ने को तोड़ देता है। इस तरह भगवान् ने सीतादेवी का पाणिग्रहण किया जो उन्हीं के समान दिव्य रूप, सौन्दर्य, आचरण, आयु तथा स्वभाव से युक्त थीं। निस्सन्देह, वे भगवान् के वक्षस्थल पर सतत विद्यमान लक्ष्मी थीं। प्रतियोगियों की सभा में से उसे जीतकर उस के मायके से लौटते हुए भगवान् रामचन्द्र को परशुराम मिले। यद्यपि परशुराम अत्यन्त घमंडी थे क्योंकि उन्होंने इस पृथ्वी को इक्कीस बार राजाओं से विहीन बनाया था, किन्तु वे क्षत्रियवंशी राजा भगवान् राम से पराजित हो गये।
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