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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 10: परम भगवान् रामचन्द्र की लीलाएँ  »  श्लोक 6-7
 
 
श्लोक  9.10.6-7 
यो लोकवीरसमितौ धनुरैशमुग्रं
सीतास्वयंवरगृहे त्रिशतोपनीतम् ।
आदाय बालगजलील इवेक्षुयष्टिं
सज्ज्यीकृतं नृप विकृष्य बभञ्ज मध्ये ॥ ६ ॥
जित्वानुरूपगुणशीलवयोऽङ्गरूपां
सीताभिधां श्रियमुरस्यभिलब्धमानाम् ।
मार्गे व्रजन् भृगुपतेर्व्यनयत् प्ररूढं
दर्पं महीमकृत यस्त्रिरराजबीजाम् ॥ ७ ॥
 
शब्दार्थ
य:—जो रामचन्द्र; लोक-वीर-समितौ—समाज में या इस संसार के अनेक वीरों के मध्य; धनु:—धनुष; ऐशम्—शिवजी का; उग्रम्—अत्यन्त कठिन; सीता-स्वयंवर-गृहे—उस सभाभवन में जहाँ सीतादेवी अपना पति चुनने के लिए खड़ी थीं; त्रिशत- उपनीतम्—तीन सौ आदमियों द्वारा उठाकर लाया गया धनुष; आदाय—लेकर; बाल-गज-लील:—गन्ने के जंगल में हाथी के बच्चे की भाँति कार्य करते हुए; इव—सदृश; इक्षु-यष्टिम्—गन्ने का खण्ड; सज्ज्यी-कृतम्—धनुष की डोरी चढ़ा दी; नृप—हे राजा; विकृष्य—झुकाकर; बभञ्ज—तोड़ डाला; मध्ये—बीच से; जित्वा—जीतकर; अनुरूप—अपने पद तथा सौन्दर्य के अनुकूल; गुण— गुण; शील—आचरण; वय:—उम्र; अङ्ग—शरीर; रूपाम्—सौन्दर्य; सीता-अभिधाम्—सीता नामक; श्रियम्—लक्ष्मी को; उरसि— वक्षस्थल पर; अभिलब्धमानाम्—सदैव रहती हैं; मार्गे—पथ पर; व्रजन्—जाते हुए; भृगुपते:—भृगुपति का; व्यनयत्—विनष्ट किया; प्ररूढम्—अत्यन्त गहरा; दर्पम्—घमंड; महीम्—पृथ्वी को; अकृत—विनष्ट; य:—जिसने; त्रि:—(सात गुणित) तीन बार; अराज— राज्यविहीन; बीजाम्—बीज ।.
 
अनुवाद
 
 हे राजन्, भगवान् रामचन्द्र की लीलाएँ हाथी के बच्चे के समान अत्यन्त अद्भुत थीं। उस सभाभवन में जिसमें सीतादेवी को अपने पति का चुनाव करना था, उन्होंने इस संसार के वीरों के बीच भगवान् शिव के धनुष को तोड़ दिया। यह धनुष इतना भारी था कि इसे तीन सौ व्यक्ति उठाकर लाए थे लेकिन भगवान् रामचन्द्र ने इसे मोडक़र डोरी चढ़ाई और बीच से उसे वैसे ही तोड़ डाला जिस तरह हाथी का बच्चा गन्ने को तोड़ देता है। इस तरह भगवान् ने सीतादेवी का पाणिग्रहण किया जो उन्हीं के समान दिव्य रूप, सौन्दर्य, आचरण, आयु तथा स्वभाव से युक्त थीं। निस्सन्देह, वे भगवान् के वक्षस्थल पर सतत विद्यमान लक्ष्मी थीं। प्रतियोगियों की सभा में से उसे जीतकर उस के मायके से लौटते हुए भगवान् रामचन्द्र को परशुराम मिले। यद्यपि परशुराम अत्यन्त घमंडी थे क्योंकि उन्होंने इस पृथ्वी को इक्कीस बार राजाओं से विहीन बनाया था, किन्तु वे क्षत्रियवंशी राजा भगवान् राम से पराजित हो गये।
 
 
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