अपनी पत्नी के वचनों से बँधे पिता का आदेश पालन करते हुए भगवान् रामचन्द्र ने उसी तरह अपना राज्य, ऐश्वर्य, मित्र, शुभचिन्तक, निवास तथा अन्य सर्वस्व त्याग दिया जिस तरह मुक्तात्मा अपना जीवन त्याग देता है। तब वे सीता सहित जंगल में चले गये।
तात्पर्य
महाराज दशरथ के तीन पत्नियाँ थीं। इनमें से कैकेयी ने उनको अपनी सेवाओं से प्रसन्न कर लिया था अतएव उन्होंने उसे वर देना चाहा था। किन्तु कैकेयी ने कहा था कि उपयुक्त अवसर पर वह माँग लेगी। फलत: रामचन्द्रजी के राजतिलक के अवसर पर कैकेयी ने अपने पति से प्रार्थना की कि वे उसके पुत्र भरत को राजगद्दी और रामचन्द्र को वनवास दे दें। वचनबद्ध होने के कारण महाराज दशरथ ने अपनी प्रियतमा के कहने पर रामचन्द्र को जंगल जाने का आदेश दे दिया और भगवान् ने आज्ञाकारी पुत्र के रूप में तुरन्त ही आदेश मान लिया। उन्होंने बिना किसी संकोच के अपना सर्वस्व त्याग दिया जिस प्रकार कोई मुक्तात्मा या महान् योगी बिना किसी भौतिक आकर्षण के अपना जीवन त्याग देता है।
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