भगवान् रामचन्द्र ने अपने भाइयों को बाहर जाने के लिए आज्ञा देकर उनके साथ दया दिखलाई। वृन्दावन में रहने वाले अनेक भगवद्भक्तों ने व्रत ले रखा है कि वे कृष्णभावनामृत का प्रचार करने के लिए वृन्दावन नहीं छोड़ेंगे। किन्तु भगवान् का कहना है कि कृष्णभावनामृत सारे विश्व में प्रत्येक गाँव और प्रत्येक नगर में प्रसारित हो। भगवान् चैतन्य महाप्रभु का यह खुला आदेश है— पृथिवीते आछे यत नगरादि ग्राम सर्वत्र प्रचार हैबे मोर नाम अतएव शुद्ध भक्त को भगवान् के आदेश का पालन करना चाहिए न कि एक ही स्थान में बंधे रहकर इन्द्रिय-तृप्ति में लगे रहना चाहिए और यह सोचकर गर्वित नहीं होना चाहिए कि वह वृन्दावन नहीं छोड़ेगा और एकान्त में कीर्तन करेगा और वह महान् भक्त बन जाएगा। भक्त को तो भगवान् के आदेश को पूरा करना चाहिए। चैतन्य महाप्रभु ने कहा है—यारे देख, तारे कह ‘कृष्ण’-उपदेश। अतएव हर एक भक्त को चाहिए कि वह जिस किसी से भी मिले उससे भगवान् का आदेश मानने को कहे और इस प्रकार उपदेश द्वारा कृष्णभावनामृत का प्रसार करे। भगवान् कहते हैं—सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज—सारे धर्मों को त्यागकर केवल मेरी शरण ग्रहण करो। यही भगवान् का आदेश है। हर एक को इस आदेश को मानना चाहिए क्योंकि यह दिग्विजय है। प्रत्येक सैनिक अर्थात् भक्त का यह धर्म है कि वह हर एक पर इस जीवन-दर्शन को ग्रहण करने के लिए जोर डाले। निस्सन्देह, जो कनिष्ठ अधिकारी हैं वे उपदेश नहीं देते, किन्तु भगवान् उन पर भी कृपादृष्टि डालते हैं जैसे कि भगवान् ने अयोध्या में स्वयं ठहरकर लोगों को अपना दर्शन दिया। किसी को गल्ती से यह नहीं सोचना चाहिए कि भगवान् ने अपने भाइयों को अयोध्या छोडऩे के लिए आज्ञा इसलिए दी क्योंकि वे प्रजा पर विशेष कृपालु थे। भगवान् हर एक पर दयालु हैं और वे जानते हैं कि हर व्यक्ति पर उसकी क्षमता के अनुसार किस प्रकार दया की जाय। जो व्यक्ति भगवान् के आदेश का पालन करता है वह शुद्ध भक्त है। |