भगवान् रामचन्द्र के शासन काल में अयोध्या की सडक़ें सुगन्धित जल से तथा हाथियों द्वारा अपनी सूँडों से फेंके गये सुगन्धित तरल की बूँदों से सींची जाती थीं। जब नागरिकों ने देखा कि भगवान् स्वयं ही इतने वैभव के साथ शहर के मामलों की देखरेख कर रहे हैं तो उन्होंने इस वैभव की भूरि-भूरि प्रशंसा की।
तात्पर्य
हमने रामचन्द्रजी के शासनकाल में रामराज्य के वैभव के विषय में सुन रखा है। यहाँ पर भगवान् के राज्य-वैभव का एक उदाहरण प्रस्तुत है। अयोध्या की सडक़ें न केवल बुहारी जाती थीं वरन् सुगन्धित जल तथा हाथी की सूँडों द्वारा छिडक़े गये सुगन्धित तरल से सींची जाती थीं। उस समय छिडक़ाव करने वाले यंत्रों की जरूरत नहीं पड़ती थी क्योंकि हाथियों में जल को अपनी सूंड में भरकर छिडक़ने की सहज शक्ति पाई जाती है। हम इसी एक उदाहरण से शहर के वैभव का पता लगा सकते हैं। इसे वास्तव में सुगंधित जल से छिडक़ा जाता था। यही नहीं, नागरिकों को भगवान् द्वारा राज्य के सारे मामलों की स्वयं निगरानी करते देखने का सौभाग्य प्राप्त था। वे आलसी सम्राट न थे, जैसा कि हम उनके कार्यों से देखते हैं कि राजधानी से दूर के मामलों की देखरेख करने तथा जो सम्राट के आदेशों का पालन न करे उसे दण्ड देने के लिए उन्होंने भाइयों को भेज रखा था। यह दिग्विजय कहलाती है। नागरिकों को शान्त जीवन बिताने की सारी सुविधाएँ प्राप्त थीं और वे वर्णाश्रम धर्म के अनुसार समुचित लक्षणों से सम्पन्न थे। जैसा कि हम पिछले अध्याय में देख चुके हैं—वर्णाश्रम गुणान्विता:—नागरिकों को वर्णाश्रम प्रणाली के अनुसार प्रशिक्षण प्राप्त था। लोगों का एक वर्ग ब्राह्मण था, एक अन्य वर्ग क्षत्रिय था, एक तीसरा वर्ग वैश्यों का था और चौथा वर्ग शूद्रों का था। ऐसे वैज्ञानिक विभाजन के बिना अच्छी नागरिकता का प्रश्न ही नहीं उठता। राजा उदार तथा कर्तव्यपरायण होने के कारण अनेक यज्ञ करता था और प्रजा को पुत्रवत् मानता था। नागरिक भी वर्णाश्रम प्रणाली में प्रशिक्षित होने से अत्यन्त आज्ञाकारी एवं सुसंयमित थे। सम्पूर्ण राजतंत्र इतना वैभवशाली तथा शान्त था कि सरकार सडक़ों पर भी सुगन्धित जल का छिडक़ाव करा सकती थी, अन्य व्यवस्था की बात तो छोड़ दें। चूँकि सारी नगरी में सुगंधित जल से छिडक़ाव हुआ था, अतएव हम अनुमान लगा सकते हैं कि अन्य मामलों में वह कितनी वैभवशाली थी। तो भला भगवान् रामचन्द्र के राज्य में लोग सुखी क्यों न रहे होंगे!
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