नमो ब्रह्मण्यदेवाय रामायाकुण्ठमेधसे ।
उत्तमश्लोकधुर्याय न्यस्तदण्डार्पिताङ्घ्रये ॥ ७ ॥
शब्दार्थ
नम:—हम सादर नमस्कार करते हैं; ब्रह्मण्य-देवाय—भगवान् को, जो ब्राह्मणों को अपना पूज्यदेव मानते हैं; रामाय—भगवान् रामचन्द्र को; अकुण्ठ-मेधसे—जिनकी स्मृति तथा ज्ञान कभी चिन्ता से ग्रस्त नहीं होते; उत्तमश्लोक-धुर्याय—सुप्रसिद्ध व्यक्तियों में सर्वश्रेष्ठ; न्यस्त-दण्ड-अर्पित-अङ्घ्रये—जिनके चरणकमलों की पूजा दण्ड के क्षेत्र से परे मुनियों द्वारा की जाती है ।.
अनुवाद
हे प्रभु, आप भगवान् हैं और आपने ब्राह्मणों को अपना आराध्य देव स्वीकार किया है। आपका ज्ञान तथा स्मृति कभी चिन्ताग्रस्त नहीं होते। आप इस संसार के सभी विख्यात पुरुषों में प्रमुख हैं और आपके चरणों की पूजा अदण्डनीय मुनियों द्वारा की जाती है। हे भगवान् रामचन्द्र, हम आपको सादर नमस्कार करते हैं।
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