महाराज गाधि का पुत्र विश्वामित्र अग्नि की लपटों के समान शक्तिशाली था; उसने तपस्या द्वारा क्षत्रिय पद से तेजस्वी ब्राह्मण का पद प्राप्त किया।
तात्पर्य
परशुराम का वृत्तान्त बताने के बाद शुकदेव गोस्वामी विश्वामित्र की कथा प्रारम्भ करते हैं। परशुराम के इतिहास से पता चलता है कि यद्यपि वे ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुए थे, किन्तु परिस्थितिवश उन्हें क्षत्रिय के रूप में कार्य करना पड़ा। क्षत्रिय का कार्य पूरा कर लेने के बाद वे पुन: ब्राह्मण बन गये और महेन्द्र पर्वत लौट आये। इसी प्रकार हम देख सकते हैं कि यद्यपि विश्वामित्र क्षत्रिय कुल में उत्पन्न हुए थे, किन्तु तपस्या के द्वारा उन्होंने ब्राह्मण पद प्राप्त किया था। इन इतिहासों से शास्त्रों के इन कथनों की पुष्टि होती है कि वांछित गुण अर्जित करके ब्राह्मण क्षत्रिय बन सकता है, क्षत्रिय ब्राह्मण या वैश्य बन सकता है और वैश्य ब्राह्मण बन सकता है। किसी का पद उसके जन्म पर निर्भर नहीं करता। श्रीमद्भागवत में (७.११.३५) नारद मुनि ने पुष्टि की है—
यस्य यल्लक्षणं प्रोक्तं पुंसो वर्णाभिव्यञ्जकम्।
यदन्यत्रापि दृश्येत तत् तेनैव विनिर्दिशेत् ॥
“यदि किसी में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र के लक्षण दिखें तो भले ही वह अन्य जाति में क्यों न पैदा हुआ हो, उसे उन लक्षणों के अनुसार ही स्वीकार करना चाहिए।” यह जानने के लिए कि कौन ब्राह्मण है और कौन क्षत्रिय है, मनुष्य के गुण तथा कर्म पर विचार करना चाहिए। यदि सारे अयोग्य शूद्र तथाकथित ब्राह्मण तथा क्षत्रिय बन जायँ तो सामाजिक व्यवस्था बनाये रखना असम्भव हो जाय। इस तरह अनेक त्रुटियाँ आ जायेंगी और मानव समाज पशु समाज बन जायेगा जिससे सारे संसार में नारकीय स्थिति उत्पन्न हो जायेगी।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥