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श्लोक |
कुशात् प्रति: क्षात्रवृद्धात् सञ्जयस्तत्सुतो जय: ।
तत: कृत: कृतस्यापि जज्ञे हर्यबलो नृप: ॥ १६ ॥ |
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शब्दार्थ |
कुशात्—कुश से; प्रति:—प्रति नामक पुत्र; क्षात्रवृद्धात्—क्षत्रवृद्ध का पौत्र; सञ्जय:—सञ्जय; तत्-सुत:—उसका पुत्र; जय:—जय; तत:—उससे; कृत:—कृत; कृतस्य—कृत का; अपि—भी; जज्ञे—उत्पन्न हुआ; हर्यबल:—हर्यबल; नृप:—राजा ।. |
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अनुवाद |
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क्षत्रवृद्ध के पौत्र कुश से प्रति नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। प्रति का पुत्र सञ्जय, सञ्जय का पुत्र जय, जय का पुत्र कृत और कृत का पुत्र राजा हर्यबल हुआ। |
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