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श्लोक |
तस्यां गतायां स्वगृहं ययातिर्मृगयां चरन् ।
प्राप्तो यदृच्छया कूपे जलार्थी तां ददर्श ह ॥ १८ ॥ |
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शब्दार्थ |
तस्याम्—उसके; गतायाम्—चले जाने पर; स्व-गृहम्—अपने घर; ययाति:—राजा ययाति; मृगयाम्—शिकार करने; चरन्—घूमते हुए; प्राप्त:—आया; यदृच्छया—संयोगवश; कूपे—कुएँ में; जल-अर्थी—जल पीने की इच्छा से; ताम्—उसको (देवयानी को); ददर्श—देखा; ह—निस्सन्देह ।. |
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अनुवाद |
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देवयानी को कुएँ में धकेल कर शर्मिष्ठा अपने घर चली गई। तभी शिकार के लिए निकला राजा ययाति उस कुएँ पर पानी पीने के लिए आया और संयोगवश देवयानी को देखा। |
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