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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 2: मनु के पुत्रों की वंशावलियाँ  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  9.2.15 
कवि: कनीयान् विषयेषु नि:स्पृहो
विसृज्य राज्यं सह बन्धुभिर्वनम् ।
निवेश्य चित्ते पुरुषं स्वरोचिषं
विवेश कैशोरवया: परं गत: ॥ १५ ॥
 
शब्दार्थ
कवि:—दूसरा पुत्र कवि; कनीयान्—जो सबसे छोटा था; विषयेषु—भौतिक भोगों में; नि:स्पृह:—आसक्तिरहित; विसृज्य—छोडक़र; राज्यम्—अपने पिता की सम्पत्ति (राज्य) को; सह बन्धुभि:—अपने मित्रों सहित; वनम्—जंगल में; निवेश्य—सदैव रखकर; चित्ते—हृदय में; पुरुषम्—परम पुरुष को; स्व-रोचिषम्—आत्म-तेजस्वी; विवेश—प्रविष्ट हो गया; कैशोर-वया:—किशोरावस्था में; परम्—दिव्य जगत; गत:—प्रविष्ट हुआ ।.
 
अनुवाद
 
 मनु के सबसे छोटे पुत्र कवि ने भौतिक भोगों को अस्वीकार करते हुए युवावस्था में पहुँचने के पूर्व ही राजपाट त्याग दिया। वह अपने हृदय में आत्म-तेजस्वी भगवान् का सदैव चिन्तन करते हुए अपने मित्रों सहित जंगल में चला गया। इस प्रकार उसने सिद्धि प्राप्त की।
 
 
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