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श्लोक 9.2.21  |
ततोऽग्निवेश्यो भगवानग्नि: स्वयमभूत् सुत: ।
कानीन इति विख्यातो जातूकर्ण्यो महानृषि: ॥ २१ ॥ |
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शब्दार्थ |
तत:—देवदत्त से; अग्निवेश्य:—अग्निवेश्य; भगवान्—अत्यन्त शक्तिशाली; अग्नि:—अग्निदेव; स्वयम्—साक्षात्; अभूत्—हुआ; सुत:—पुत्र; कानीन:—कानीन; इति—इस प्रकार; विख्यात:—सुप्रसिद्ध था; जातूकर्ण्य:—जातूकर्ण्य; महान् ऋषि:—परम सन्त पुरुष ।. |
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अनुवाद |
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देवदत्त का पुत्र अग्निवेश्य हुआ जो साक्षात् अग्निदेव था। यह पुत्र विख्यात सन्त था और कानीन तथा जातूकर्ण्य के नाम से विख्यात हुआ। |
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