दिष्ट का पुत्र नाभाग हुआ। यह नाभाग जो आगे वर्णित होने वाले नाभाग से भिन्न था, वृत्ति से वैश्य बन गया। नाभाग का पुत्र भलन्दन हुआ, भलन्दन का पुत्र वत्सप्रीति हुआ और उसका पुत्र प्रांशु था। प्रांशु का पुत्र प्रमति था, प्रमति का पुत्र खनित्र और खनित्र का पुत्र चाक्षुष था जिसका पुत्र विविंशति हुआ।
तात्पर्य
मनु का एक पुत्र ब्राह्मण, दूसरा क्षत्रिय और तीसरा वैश्य बना। इससे नारद मुनि के इस कथन की पुष्टि होती है—यस्य यल्लक्षणं प्रोक्तं पुंसो वर्णाभिव्यंजकम् (भागवत ७.११.३५)। यह कभी नहीं मानना चाहिए कि ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्य जन्मजात हैं। ब्राह्मण क्षत्रिय बन सकता है और क्षत्रिय ब्राह्मण। इसी प्रकार ब्राह्मण या क्षत्रिय वैश्य बन सकता है और वैश्य ब्राह्मण या क्षत्रिय में बदल सकता है। इसकी पुष्टि भगवद्गीता में हुई है (चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागश: )। अतएव कोई जन्म से ब्राह्मण, क्षत्रिय या वैश्य नहीं बनता अपितु गुण से बनता है। चूँकि ब्राह्मणों की नितान्त आवश्यकता है अतएव हम कृष्णभावनामृत आन्दोलन में कुछ ब्राह्मणों को मानव समाज का मार्गदर्शन कराने के लिए प्रशिक्षित करने का प्रयास कर रहे हैं। चूँकि इस समय ब्राह्मणों की कमी है इसलिए मानव समाज का मस्तिष्क नष्ट हो चुका है। चूँकि व्यावहारिक रूप में प्रत्येक व्यक्ति शूद्र है अतएव इस समय समाज को सही पथ का मार्गदर्शन कराने वाला कोई नहीं है जिससे जीवन की सिद्धि प्राप्त की जा सके।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.