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श्लोक 9.2.26  |
तस्यावीक्षित् सुतो यस्य मरुत्तश्चक्रवर्त्यभूत् ।
संवर्तोऽयाजयद् यं वै महायोग्यङ्गिर:सुत: ॥ २६ ॥ |
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शब्दार्थ |
तस्य—उसके (करन्धम के); अवीक्षित्—अवीक्षित; सुत:—पुत्र; यस्य—जिसका (अवीक्षित का); मरुत्त:—मरुत्त नामक (पुत्र); चक्रवर्ती—राजा; अभूत्—हुआ; संवर्त:—संवर्त; अयाजयत्—यज्ञ कराने के लिए रखा; यम्—जिसको (मरुत्त को); वै— निस्सन्देह; महा-योगी—महान् योगी; अङ्गिर:-सुत:—अंगिरा का पुत्र ।. |
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अनुवाद |
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करन्धम से अवीक्षित नामक पुत्र हुआ जिसका पुत्र मरुत्त था जो सम्राट था। महान् योगी अंगिरा-पुत्र संवर्त ने यज्ञ सम्पन्न कराने के लिए मरुत्त को लगाया। |
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