हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 2: मनु के पुत्रों की वंशावलियाँ  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  9.2.28 
अमाद्यदिन्द्र: सोमेन दक्षिणाभिर्द्विजातय: ।
मरुत: परिवेष्टारो विश्वेदेवा: सभासद: ॥ २८ ॥
 
शब्दार्थ
अमाद्यत्—मदान्ध हो गया; इन्द्र:—इन्द्र; सोमेन—सोमरस का पान करके; दक्षिणाभि:—पर्याप्त दक्षिणा प्राप्त करके; द्विजातय:— ब्राह्मण वर्ग; मरुत:—मरुतों ने; परिवेष्टार:—भोज्य पदार्थ परोसा; विश्वेदेवा:—विश्वेदेवा; सभा-सद:—सभा के सदस्य ।.
 
अनुवाद
 
 उस यज्ञ में सोमरस की बहुत अधिक मात्रा पीने से राजा इन्द्र मदान्ध हो गया। ब्राह्मणों को प्रचुर दक्षिणा मिली जिससे वे सन्तुष्ट थे। उस यज्ञ में मरुतों के विविध देवताओं ने खाना परोसा और विश्वेदेव सभा के सदस्य थे।
 
तात्पर्य
 मरुत्त द्वारा सम्पन्न यज्ञ से सभी लोग विशेष रूप से ब्राह्मण तथा क्षत्रिय प्रसन्न थे। ब्राह्मण पुरोहितों के रूप में दक्षिणा पाने में रुचि रखते हैं और क्षत्रिय मद्यपान करने में। अतएव सभी लोग अपने- अपने प्राप्तव्यों से सन्तुष्ट थे।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥