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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 2: मनु के पुत्रों की वंशावलियाँ  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  9.2.3 
पृषध्रस्तु मनो: पुत्रो गोपालो गुरुणा कृत: ।
पालयामास गा यत्तो रात्र्यां वीरासनव्रत: ॥ ३ ॥
 
शब्दार्थ
पृषध्र: तु—उनमें से पृषध्र; मनो:—मनु का; पुत्र:—पुत्र; गो-पाल:—गायों को पालने वाला; गुरुणा—अपने गुरु के आदेश से; कृत:—लगाया गया; पालयाम् आस—रक्षा की; गा:—गायों को; यत्त:—इस प्रकार लगाया गया; रात्र्याम्—रात में; वीरासन व्रत:—वीरासन का व्रत लेकर तलवार लिए खड़ा ।.
 
अनुवाद
 
 इन पुत्रों में से पृषध्र अपने गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए गायों की रखवाली में लग गया। गायों की रक्षा के लिए वह सारी रात हाथ में तलवार लिए खड़ा रहता।
 
तात्पर्य
 वीरासन कहलाने वाला व्यक्ति हाथ में तलवार लेकर सारी रात खड़ा रहकर गायों की रक्षा करने का व्रत लेता है। चूँकि पृषध्र ने ऐसा व्रत ले रखा था अतएव यह समझा जा सकता है कि उसका कोई कुल नहीं था। इस व्रत से हम यह भी समझ सकते हैं कि गो-रक्षा कितनी अनिवार्य है। क्षत्रिय का कोई न कोई पुत्र गायों को रात्रि में भी खूँख्वार जानवरों से बचाने के लिए यह व्रत लेता था। तो फिर गायों को कसाईघरों में भेजने के विषय में क्या कहा जाय? यह तो मानव समाज का सबसे पापपूर्ण कृत्य है।
 
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